जर्मनी के व्यंजनों में सॉसेज की ख़ास जगह है, लेकिन ब्रैटवुर्स्ट (बारीक कटे हुए मांस से बना सॉसेज) बनाने की
पारंपरिक कला जल्द ही अतीत की बात हो सकती है.
पूरे जर्मनी में कसाई अपनी दुकानें बंद कर रहे हैं. यहां पिछले दो दशकों में मांस की दुकानें करीब-करीब आधी रह गई हैं.जर्मन बुचर्स एसोसिएशन (DFV) के मुताबिक 1998 में मांस की 21,160 दुकानें थीं जो 2018 में 12,000 से भी कम रह गईं.
बर्लिन में रहने वाले 37 लाख लोगों के लिए सिर्फ़ 108 कसाई की दुकानें हैं. केंद्रीय प्रांत थुरिंगिया से तुलना करें तो अंतर साफ-साफ दिखता है.
वहां 21.5 लाख आबादी के लिए करीब 400 कसाई दुकानें हैं.
कसाई दुकानें बंद होने का संबंध मुनाफे़ से नहीं है. DFV के मुताबिक, जर्मनी के लोग अब भी परंपरागत रूप से बनाए गए मांस उत्पादों को बड़े चाव से खरीदते हैं.
पिछले दो दशकों में मांस दुकानों की औसत सालाना बिक्री 60 फीसदी से ज़्यादा बढ़ी और 2018 में यह 14 लाख यूरो (15.7 लाख डॉलर या 12.6 लाख पाउंड) के पार पहुंच गई.
तो फिर अगर मांग बरकरार है तो जर्मनी की कसाई दुकानें बंद क्यों हो रही हैं? बर्लिन के पुराने कसाई जॉर्ग लिटगॉ के पास इसका सीधा जवाब है- युवा पीढ़ी में इस पेशे की अपील नहीं रह गई है. वह कहते हैं, "यह मेहनत का काम है. अब इसे कोई नहीं करना चाहता."
लिटगॉ 1995 से अपना व्यवसाय चला रहे हैं. वह पांचवी पीढ़ी के कसाई हैं. उनकी सुबह साढ़े चार बजे शुरू होती है. दुकान के पीछे उनका प्रोडक्शन एरिया है, जहां वह दिन के 14 घंटे बिताते हैं.
यहां सॉसेज बनाने के पारिवारिक मसालों से मांस के उत्पाद तैयार किए जाते हैं. वह कहते हैं, "हम ख़ुद के मसाला मिश्रण बनाते हैं. कुछ दूसरी दुकानों में पहले से तैयार मसालों का इस्तेमाल होता है, लेकिन हमारे यहां वह चीज नहीं मिलेगी."
एक शांत सी गली में उनकी दुकान के आगे उनकी मेहनत टंगी रहती है- गोमांस के करीने से कटे टुकड़े, छोटे सुअर के मांस से तैयार सॉसेज जो मिर्च पाउडर मिलाने से चटख लाल रंग के हो जाते हैं और भूरे लिवरवर्स्ट के लंबे सिलेंडर.
लिटगॉ कहते हैं, "मेरे माता-पिता ने यह काम किया. मेरे दादा-दारी ने भी यही काम किया. मेरे नाना-नानी ने 1934 में इस जगह अपनी दुकान खोली थी."
लेकिन अब उनके परिवार का कोई भी सदस्य या रिश्तेदार इस काम में नहीं लगना चाहता, इसलिए लिटगॉ को चिंता है कि उनके काम छोड़ने के बाद परिवार की परंपरा जारी नहीं रह पाएगी.
"मैंने पिछले कुछ सालों में कई प्रशिक्षुओं को रखा, लेकिन अब मैं वह काम नहीं करता."
"वे यह काम करने के लिए तैयार नहीं हैं. वे ऐसा काम नहीं करना चाहते जिसमें बहुत ज़्यादा समय और शारीरिक मेहनत लगती है."
यह बदलाव जर्मनी की राजधानी तक सीमित नहीं है. हालिया अनुमानों के मुताबिक जर्मनी के दो-तिहाई कसाई 50 साल से ऊपर के हैं और उनकी जगह लेने के लिए कोई नहीं है.
तीन साल के कसाई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दाखिला लेने वालों की तादाद बहुत घट गई है. इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
DFV के मुताबिक 1999 में 10 हजार से भी ज़्यादा प्रशिक्षु कसाई थे, लेकिन 2017 में उनकी तादाद घटकर तीन हजार रह गई.
मांस की दुकानों में सेल्समैन बनने के लिए भी तीन साल की ट्रेनिंग ज़रूरी है. यह ट्रेनिंग लेने वालों की तादाद और घट गई है.
1999 में करीब 14 हजार सेल्स ट्रेनी थे. 2017 में यह तादाद घटकर 3,700 से भी नीचे पहुंच गई.